खता क्या थी मेरी ?
गतांक से आगे.…
जैसे ही ठाकुर महेन्द्र प्रताप घर पहुंचे बड़ी बहू आंगन में झाड़ू लगा रही थी ससुर को इतनी जल्दी नित्य कर्म से हो कर आता देखकर हैरान रह गयी। ठाकुर साहब खंखार करके अपने कमरे में आ गये बहू भगवान सिंह को जगा लाई कि क्या तो पिता जी इस समय घर से निकलते थे कहां अब सब काम करके वापिस भी आ गये। कोई बात तो नहीं है जो पिता जी इता सबेरा सबेरा कहां जा रिया था।"आते ही भगवान सिंह ने प्रश्नों की झड़ी लगा दी। ठाकुर साहब सारी रात के जगे थे झुंझलाना लाजमी था सो जोर से बोले,"डटे गा ,आता ही बोलन लाग्या।मेह तेरे सू बताई थी ना कल के गनपत के घर में एक रुकी हुई आत्मा है वो मुझसे संपर्क करती है बस मैंने उसका आना जाना बचा लिया बेचारी अपना दुःख सुनाकर मुक्ति चाहती है।पता है तुझे कौन दिखता है मुझे?"भगवान सिंह अचरज से पिता की ओर देखते हुए बोला ,"कौन? ठाकुर साहब कनक को याद करके सिहर गये बोले,"कनक,गनपत साहू की बड़ी बेटी ।"भगवान सिंह एकदम हैरान रह गया ,"पर यह कैसे हो सकता है गनपत का तो पूरा परिवार आज से सालों पहले हवेली छोड़ कर शहर जा कर बस गया था ।"ठाकुर साहब भारी मन से बोले ,"बस यही तो पता लगाने जाता हूं इतनी रात को कि क्या हुआ होगा उसके साथ जो वो दोनों जहान के बीच में फंसकर रह गयी।और सुन जब मैं जाऊं और जब आऊं कोई टोकेगा नहीं मुझे।और हां अगर कल ही दलाल से कागज़ तैयार कराकर हवेली की रजिस्ट्री की तैयारी कर लें हो सकता है वो वहां फंसी है तो उसका पार्थिव शरीर भी उसी हवेली में होगा उसको ढूंढने के लिए तो हवेली ख़रीदनी ही पड़ेगी।वैसे भी भवानी खरीदने को कह ही रहा था।"जी पिता जी जैसा थेह चाहो।यह कहकर भगवान सिंह नित्य कर्म के लिए चला गया और कोई उनको जगाये नहीं ऐसा कहकर ठाकुर साहब हल्का फुल्का नाश्ता कर के सो गये।
ठाकुर महेन्द्र प्रताप दोपहर बाद उठें ।दोपहर और रात का खाना एक ही समय करके ठाकुर साहब अखबार वगैरह पढ़ने लगे । फिर याद आया कि क्यूं ना अलमारी में जो तंत्र विद्या की किताबें रखी थी उनको खंगाल लूं बस फिर तो ठाकुर साहब उसी में लग गये। पढ़ते-पढ़ते ये ध्यान ही नहीं रहा रात कब हो गयी। भगवान सिंह ने भी घर में सभी को कह दिया था कि पिताजी कोई तांत्रिक अनुष्ठान कर रहे हैं उनको जो भी चीज जिस समय चाहिए दे देना ।बहू रात के लिए कुछ खाने का सामान और टार्च वगेरह रख गयी थी ताकि पिताजी को परेशानी ना हो ।अब तो ठाकुर साहब ने ठान ही लिया था कि कनक को मुक्ति दिलानी ही है ।रात बारह बजते ही ठाकुर साहब चल दिए अपनी कनक बिटिया के पास जैसे ही ठाकुर वहां पहुंचे कनक दिखाई नहीं दी ठाकुर साहब की बैचेनी बढ़ती जा रही थी ठाकुर उस चबूतरे पर बैचेनी से टहलने लगे इतने में कनक आ गयी"क्या बात बिटिया कहा यह गयी थी?"कनक हांफते हुए बोली,"ददू धीरे बोलिए छोटी मां से बच कर आयी हूं। सारा दिन कहती रहती है ये कर वो कर बड़ी मुश्किल से आती हूं। ठाकुर साहब समझ गये कि यह लड़की उसी ओरा में फंसी हुई है जिस में मरने से पहले थी।बोले ,"कोई नहीं बेटी मैं देख लूंगा तेरी छोटी मां को।तू आगे बता तेरे साथ क्या हुआ।कनक चबूतरे पर बैठ गयी ,"हां ददू मैं बता रही थी ना मेरी और सैफ की मुलाकातें धीरे-धीरे बढ़ने लगी कभी वो भाई से मिलने के बहाने मुझसे मिलने आ जाते कभी मैं चोरी चोरी उन से मिल आती हमारी मुलाकातों ने हमारे प्यार को ओर गहरा कर दिया पर मुझे नहीं लगता कि भगवान मुझ पर इतना मेहरबान कैसे हो गया जैसे छोटी मां के पीछे से मैंने अपनी सारी जिंदगी की खुशियां पा ली थी पर ये खुशियां कितने दिन टिकने वाली थी
मामा की उपरी हवा ठीक हो गयी थी । छोटी मां वापिस घर आ गयी ।मेरे दुःख के दिन फिर से शुरू हो गये ।अब मां का पहरा चौबीस घंटे मेरे ऊपर रहता था । सारा दिन बोलती थी ,"कलमुंही तेरे पर क्या रंग चढ़ गया मेरे पीछे से ।साली दिन पे दिन निखरती जा रही है। "अब मां क्या जाने कि ये प्यार का रंग है । मुझे भी ऐसा लग रहा था पहले मैं सारा दिन शीशे में अपने को नहीं देखती थी पर अब घड़ी घड़ी शीशा देखने लगी थी मन में यही रहता कहीं सैफ आ गये तो।एक दिन मैं छत पर खड़ी थी गली से सैफ जा रहे थे पता नहीं अचानक वहां से गुजरे थे या मुझ से मिलने की चाहत ने उन्हें वहां आने पर मजबूर कर दिया था। सैफ ने जैसे ही मेरी तरफ इशारा किया मिलने का छोटी मां ने उनको ऐसा करते देख लिया मां को वो पसंद तो पहले से नहीं थे जब उनकी ये हरकत देखी तो भुखी शेरनी की तरह गुर्राते हुए ऊपर छत पर आ गयी मेरी तो जान हलक में ही अटक कर रह गयी आते ही छोटी मां ने मुझे बालों से पकड़ा और घसीटते हुए नीचे ले आयी । मैं गिड़गिड़ाई ,"मां मेरा कसूर तो बता दो आखिर मैंने क्या किया है ।"पर उन पर तो जैसे भूत सवार था।वो मुझे ऐसे मार रही थी जैसे मेरे से बहुत बड़ा गुनाह हो गया हो ।मैं मन ही मन सोच रही थी जब मां मुझे जी भर कर मार कर चली गयी कि भगवान तूने मेरी मां को क्यों अपने पास बुला लिया अगर आज वो होती तो क्या मेरे मन की बात ना सुनती। मैंने देखा छोटी मां आज पूरा फैसला करके बैठी थी पिता जी के आते ही वह उनके कमरे में भडभडाते हुए पहुंच गई।(क्रमशः)
Seema Priyadarshini sahay
17-Feb-2022 06:16 PM
बहुत ही रोचक
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Monika garg
17-Feb-2022 08:47 PM
धन्यवाद
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